Gyan Pipasu - thirsty for knowledge is a blog of Indian poet and story writer "Pipasu: , this blog is cantains his litreture work in form of short stories, poetry, thoughts, dohe and the plays ..
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HINDI KAVITA,
PIPASU,
POEM
Location:
New Delhi, Delhi, India
ऐ
मेरे देश के कपूतो,
तुम
किसे देख कर जीते हो।
पग पग
भूमि जिसे में माँ बुलाता हूँ,
उस
माँ को अपने कुकर्मो से रोंदते हो ।
ऐ
मेरे देश के कपूतो तुम किसे देख कर जीते हो ।।
हिमालय
से समुद्र पर्यन्त, सहस्त्रो
योजन
विस्तार
है जिसका।
उस
माँ को टुकड़ो में काटते हो ।
उसके
अन्न को जल को बांटते हो ।
अपने
स्वार्थ के लिए उस माँ का गला रेतते हो ।
ऐ
मेरे देश के कपूतो तुम किस के लिए जीतो हो ।।
मेरी
भारत माँ जो सह्त्रो देवपुत्रो को जन्मी है ।
उस
भारती को तुम दानवो की माँ कहलवाते हो ।
ऐ
मेरे देश के कपूतो तुम जैसे कपूतो से तो, मेरी
माँ बाँझ भली ।।
अपने
ही भाइयो का रक्त चूसते हो ।
अपने
ही बहनों का बलात्कार करते हो ।
अपने
ही माँ बाप से भीख मंगवाते हो ।
ऐ
मेरे देश के कपूतो तुम किसके लिए जीते हो ।।
व्यथा
पीड़ा से भरा माँ का मन,
उसके
अश्रु बहा तुम सुख से रहना चाहते हो ।
ऐ
कपूतो सुन लो कान खोल कर ।
एक एक
बूंद अश्रु माँ का,
तुम्हारे
रक्त के कण कण से भी चुकता न होगा ।
कुकर्मो
के हिसाब में तुम्हारे यमराज भी कपता होगा ।।
ऐ
मेरे देश के कपूतो अब तो थोडा ठहरो ।
रुको
अन्दर को अपने झांको,
कुकर्मो
को अपने देखो ।
अगर
अब भी ना रुके, अपने
पापो से ना डरे ।
तो
जाओ जाके की किसी अँधेरी खाई में कूद मरो ।
पर कण
कण में अन्न में जल में बसी मेरी माँ को,
अपने
पापी हाथो से ना छुओ ।
अपने
स्वार्थ के लिए भाई बहनों को मत लूटो ।
मेरी
माँ के अश्रु ना बहने दो।
इसे
सम्मान न सही अपमान तो ना दो ।।
ऐ
मेरे देश के कपूतो,
इस
पवित्र धरती को फिर मानवो की धरती कहलाने दो ।।
ऐ
मेरे देश के कपूतो,
इस
पवित्र धरती को फिर मानवो की धरती कहलाने दो ।।
भोज के बाद ब्राह्मण पुत्र प्रबुद्ध बाहर सोफे पर बेठा था। घर की बुजुर्ग महिला हाथ में पूजा का थाल लिए बहार आयी जिसमे कुमकुम, चावल, श्री फल एवं एक लिफाफा व्यवस्थित तरीके से रखा था। ये श्राद्ध पक्ष में होने वाली के सामान्य परम्परा का हिस्सा है जब ब्राहमण भोज द्वारा मृत पूर्वजो को तृप्त किया जाता है । कभी ये परम्परा रूडिवादी विचारो के अलावा अध्यात्मिक एवं सांसारिक लाभ देने वाली रही थी । जब ब्राह्मण बास्तव में ब्राह्मण थे जो तीन संध्या गायत्री की उपासना करते पवित्र जीवन जीते थे जिनके आशीर्वाद मात्र से बाँझन को पुत्र और निर्धन को सुख प्राप्त होता था । भोजन करा कर उनके पुण्य प्रताप और आशीर्वाद प्राप्त करना एक उत्तम कार्य समजा जाता था।
प्रशांत अब बाहर इंतजार कर रहे दोस्तों की गाड़ी में था वो और उसके दोस्त दक्षिणा में मिले 501/- रुपये को देख खुश हो रहे थे जो आज रात की पार्टी की व्यवस्था के लिए काफी थे जिसमे दोस्तों के साथ मस्त ठंडी बीयर और चिकन की मौज होनी थी ।
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