भोज के बाद ब्राह्मण पुत्र प्रबुद्ध बाहर सोफे पर बेठा था। घर की बुजुर्ग महिला हाथ में पूजा का थाल लिए बहार आयी जिसमे कुमकुम, चावल, श्री फल एवं एक लिफाफा व्यवस्थित तरीके से रखा था। ये श्राद्ध पक्ष में होने वाली के सामान्य परम्परा का हिस्सा है जब ब्राहमण भोज द्वारा मृत पूर्वजो को तृप्त किया जाता है । कभी ये परम्परा रूडिवादी विचारो के अलावा अध्यात्मिक एवं सांसारिक लाभ देने वाली रही थी । जब ब्राह्मण बास्तव में ब्राह्मण थे जो तीन संध्या गायत्री की उपासना करते पवित्र जीवन जीते थे जिनके आशीर्वाद मात्र से बाँझन को पुत्र और निर्धन को सुख प्राप्त होता था । भोजन करा कर उनके पुण्य प्रताप और आशीर्वाद प्राप्त करना एक उत्तम कार्य समजा जाता था।
प्रशांत अब बाहर इंतजार कर रहे दोस्तों की गाड़ी में था वो और उसके दोस्त दक्षिणा में मिले 501/- रुपये को देख खुश हो रहे थे जो आज रात की पार्टी की व्यवस्था के लिए काफी थे जिसमे दोस्तों के साथ मस्त ठंडी बीयर और चिकन की मौज होनी थी ।
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