Subscribe:

Monday, October 7, 2013

                                               
                
                                                                                                                                                
   

ऐ मेरे देश के कपूतो,
तुम किसे देख कर जीते हो।
पग पग भूमि जिसे में माँ बुलाता हूँ,
उस माँ को अपने कुकर्मो से रोंदते हो ।
ऐ मेरे देश के कपूतो तुम किसे देख कर जीते हो ।।
  
हिमालय से समुद्र पर्यन्त, सहस्त्रो योजन
विस्तार है जिसका।
उस माँ को टुकड़ो में काटते हो ।
उसके अन्न को जल को बांटते हो ।
अपने स्वार्थ के लिए उस माँ का गला रेतते हो ।
ऐ मेरे देश के कपूतो तुम किस के लिए जीतो हो ।।

मेरी भारत माँ जो सह्त्रो देवपुत्रो को जन्मी है ।
उस भारती को तुम दानवो की माँ कहलवाते हो ।
ऐ मेरे देश के कपूतो तुम जैसे कपूतो से तो, मेरी माँ बाँझ भली ।।

अपने ही भाइयो का रक्त चूसते हो ।
अपने ही बहनों का बलात्कार करते हो ।
अपने ही माँ बाप से भीख मंगवाते हो ।
ऐ मेरे देश के कपूतो तुम किसके लिए जीते हो ।।

व्यथा पीड़ा से भरा माँ का मन,
उसके अश्रु बहा तुम सुख से रहना चाहते हो ।
ऐ कपूतो सुन लो कान खोल कर ।
एक एक बूंद अश्रु माँ का,
तुम्हारे रक्त के कण कण से भी चुकता न होगा ।
कुकर्मो के हिसाब में तुम्हारे यमराज भी कपता होगा ।।

ऐ मेरे देश के कपूतो अब तो थोडा ठहरो ।
रुको अन्दर को अपने झांको,
कुकर्मो को अपने देखो ।
अगर अब भी ना रुके, अपने पापो से ना डरे ।
तो जाओ जाके की किसी अँधेरी खाई में कूद मरो ।
 
पर कण कण में अन्न में जल में बसी मेरी माँ को,  
अपने पापी हाथो से ना छुओ ।
अपने स्वार्थ के लिए भाई बहनों को मत लूटो ।
मेरी माँ के अश्रु ना बहने दो।
इसे सम्मान न सही अपमान तो ना दो ।।

ऐ मेरे देश के कपूतो,
इस पवित्र धरती को फिर मानवो की धरती कहलाने दो ।।
ऐ मेरे देश के कपूतो,
इस पवित्र धरती को फिर मानवो की धरती कहलाने दो ।।

 

0 comments:

Post a Comment

 
Copyright 2009 Pipasu